13 रजब -जब इंसानियत को मुस्कान देने वाली शख्सियत हज़रत इमाम अली अलैहिस्लाम ने ज़मीन पर पाँव रखे थे

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तहलका टुडे ग्रुप 13 रजब पर आप सबको मुबारक बाद करता है पेश
उनमें नरमी ऐसी की मोम  भी उनसे सीखे। ताक़त इतनी की उस दौर का सख्त तपा हुआ लोहा कमज़ोर पड़ जाए। मोहब्बत इतनी की ख़ुशबू पीढ़ी दर पीढ़ी महके। इल्म इतना की अनगिनत किताबें एक ही करवट से निकलें। ख़िदमत ऐसी की दुनिया की सबसे शानदार मिसाल बन जाए। दानशीलता ऐसी की खुद का खून निचोड़ कर ज़रूरतमंद में बाँट दें। इंसाफ ऐसा की तराज़ू का कांटा माशा भर भी इधर उधर न झुके। यूँ कहे की खुदा की सिफ़ात हर फ़न का नायाब तोहफा जो मिसाल बना दुनिया के लिये।

जिनकी पैदाइश का गवाह काबा और शहादत के आँसू मस्जिद ने बहाए हों। जिनको मिटाने के लिए भी रास्ता वह चुना गया, जब उनका सर खुदा के सजदे में हो, खुदा के सामने झुके सर पर भी पीठ पर वार करके सोचा था कि उन्हें मिटा लेंगे और वह चमक कर घर घर,नस्ल दर नस्ल सारे आलम में रौशन हो गए।उनकी तारीफ़ में क्या कहें, उनकी खुशबू को किन अल्फ़ाज़ में समेटे, वह तो हर मासूमियत में हैं। यह हैं हमारे *हज़रत अली* जिनका आज जन्मदिन है, यानि वह आजका ही दिन था जब इंसानियत को मुस्कान देने वाली शख्सियत ने ज़मीन पर पाँव रखे थे।

मेरा दिल जब डूबकर लड़खड़ाता है तो उसे सहारा देते हैं मेरे अली। अली ने सूफ़िज़्म की वह नीव रखी जिसकी आगोश में सारा जहाँ आ गया। जब उन्होंने मोहब्बत से बाहे फैलाई पूरी आवाम सर झुका के खड़ी हो गई। हर एक के सवाल, परेशानी, दर्द, तकलीफ़ में जिसने फाहे का काम किया वह अली थे।

जब आँखों में अँधेरा और मुस्तकबिल में कालिख़ दिखी तब रौशनी का काम किया अली ने। मेरे अली ने हर दर्द में चीरा लगाया।हर तकलीफ़ में मरहम के फाहे रखे। इंसानियत को अपनी मोहब्बत और दूरंदेश सोच से ऐसा रास्ता दिखाया की इंसानियत की राह आसान हो गई।

जिन्होंने हज़ारों साल पहले वह कह दिया जिसकी आज भी उतनी ही ज़रूरत है जितनी तब थी। अपने क़ातिल तक के लिए कहा की इसको सिर्फ इतनी ही सज़ा देना जितना इसका गुनाह है। सज़ा गुनाह से बढ़कर मत हो। यह उनका ही तरीका था कि गुनहगार को सिर्फ उसके गुनाह की और गुनाह के बराबर सज़ा मिले, इसमें व्यक्तिगत दुर्भावना न जोड़ी जाए। यह उन्होंने ज़िन्दगी में करके दिखाया है।

आज जब हज़रत अली को याद करिए, तो सबसे पहले खुद में सब्र लाइये, हिम्मत को जगह दीजिये, सख़ावत को अपना ज़ेवर बनाइये, इल्म में डूब जाइये और ऐसे मोती चुनिए की इंसानियत मुस्कुराए।

हज़रत अली से सीखिए की गरीब अमीर के फ़र्क़ बिना, मज़हब और सोच के फ़र्क़ बिना, काले गोरे के फ़र्क़ बिना, औरत आदमी के फ़र्क़ बिना इंसाफ और मदद कैसे की जाती है।

दुनिया की वह नायाब मिसाल जिसने अपनी बीवी हज़रत फातिमा को बराबर से बैठाया, उनके इल्म ओ हुनर को महकने दिया, उनके किरदार पर पहरे बैठाने की जगह उसे खुलने दिया, बेपनाह मोहब्बत भी की और हौसला भी दिया।

अपने बच्चों को सच्चाई के लिए मर मिटने का सबक़ देकर बड़ा किया, उनमें ख़िदमत को कूट कूट कर पैबस्त किया और ज़ुल्म के आगे झुकने की जगह तनकर खड़े होने का गुर सिखाया,उनसे सीखिए और अपने परिवार, अपने घर, अपने दोस्तों, जानने वालों को सुधारिये, सिखाइये, खुद को निखारिये, यही हज़रत अली को याद करने का सबसे बेहतर ज़रिया है…

वरिष्ठ पत्रकार पाटेश्वरी प्रसाद के व्हाट्स एप्प स्टेटस से

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