सुनील मेहरोत्रा
1997 से क्राइम बीट में हूं। पिछले 22-23 साल से जमकर अंडरवर्ल्ड की है। डॉन से लेकर छोटा राजन, छोटा शकील, अबू सलेम, रवि पुजारी, माया डोलस से लेकर हर गैंग पर बहुत कुछ लिखा है। पर पिछले दो दशक से बेहद उत्सुकता थी- श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में जानने की। जब क्राइम बीट शुरू की, तब श्रीप्रकाश शुक्ला की दहशत अपने चरम पर थी, पर क्राइम बीट की तब उतनी समझ नहीं थी। इसलिए श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में मुंबई मीडिया में उन दिनों जो थोड़ा बहुत छपा था, बस उसे पढ़कर ही उसको बारे में मामूली सी जानकारी मिली थी। बाद में उसका एनकाउंटर ही हो गया था। जब श्री राकेश मारिया मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ थे, तब उन्होंने श्रीप्रकाश शुक्ला पर बनी फिल्म ‘सहर’ की एक बार मुझसे काफी तारीफ की थी। तब उसे लेकर फिर उत्सुकता हुई, लेकिन सहर के निर्देशक कबीर कौशिक ने नसीरूद्दीन शाह, सोनू सूद अभिनीत फिल्म मैक्सिमम के दौरान जिस तरह से मेरे साथ विश्वासघात किया, तो मुझे कौशिक से बहुत प्यार हो गया, उस बाद में सहर फिल्म को देखने की कभी इच्छा नहीं हुई। कबीर कौशिक ने ही मैक्सिमम फिल्म को निर्देशित किया था। मुझे आज भी याद है, जब गेट वे ऑफ इंडिया ब्लास्ट के जजमेंट के दिन मुझे ‘सहर’ फिल्म का हवाला देते हुए उन्होंने फोन किया था और उसके बाद मैं दर्जनों बार उन्हीं के बार-बार प्रेषित पर करीब छह से आठ महीने तक अंधेरी आरओओ के पास वात्सल्य भागीदारी में गया था। बहरहाल, वह अलग मुद्दा है …।
कुछ दिनों पहले पता चला कि बरेली के डीआईजी राजेश पांडे जी श्रीप्रकाश शुक्ला के खिलाफ यूपी एसटीएफ के ऑपरेशन पर कोई किताब लिख रहे हैं, तो पिछले महीने उन्हें फोन घुमा दिया कि मैं 19 जनवरी को शाहजहांपुर जा रहा हूं, अगर मुझे आपकी लिखी स्क्रिप्ट का बिना एडिट किए पूरा वर्जन मिल जाएगा, तो आभारी रहेंगे। मुझे श्रीप्रकाश शुक्ला को जानने की बहुत उत्सुकता है। तीन दिन पहले उन्होंने बरेली से एक सिपाही को ट्रांसफर करके शाहजहांपुर भेज दिया। दो दिन में जब दो तीन ब्रेक में पूरी स्क्रिप्ट पढ़ी जाती है, तो दिमाग झंझट हो जाता है। पढ़ने के बाद मैं दावा से कह सकता हूं कि मुंबई अंडरवर्ल्ड के सभी सरगनाओं का बाप श्रीप्रकाश शुक्ला था। मैंने आईपीएस अधिकारी के। विजय कुमार की वीरप्पन पर लिखी किताब पढ़ी है। बस, वीरप्पन की कहानी मुझे श्रीप्रकाश शुक्ला से ज्यादा खौफनाक लगी। विजय कुमार ने ही वीरप्पन का एनकाउंटर किया था। इन दिनों वह जम्मू कश्मीर के राज्यपाल की सलाहकार टीम का हिस्सा हैं। वीरप्पन और श्रीप्रकाश शुक्ला दोनों की पूरी कहानी पढ़ने के बाद यही लगा कि कमीनगी की सारी हदें पार करने वाले ये दोनों राक्षस थे। मैं कमीनगी जैसे अपशब्द अमूमन जागृतिक मंच पर लिखता नहीं, पर श्रीप्रकाश शुक्ला की हरकतें, उसके सभी कथान मानवीयता को तार-तार करने वाले थे। खौफर्न शब्द भी उसके खौफ के सामने बेहद विनम्र शब्द है। श्रीप्रकाश शुक्ला जब एक दिन श्री राजेश पांडे के घर नेपाल से फोन करता था और स्क्रिप्ट में मैंने कहा था जब दोनों के बीच लगभग आधे घंटे की बातचीत पढ़ी गई, उस वक्त मुझे शुल के मनोज वाजपेयी याद आ गए। उसके खिलाफ यूपी एसटीएफ का किस तरह ऑपरेशन चला या उसने पुलिस से बचने के लिए जो-जो खेल खेला, मुझे कई बार माया डोलस का एनकाउंटर से पहले अंधेरी के लोखंडवाला में किसी और के घर की एमटीएनएल लाइन को अपने घर में शिफ्ट करने वाला एपिसोड याद आ गया, हालांकि वह सीन फिल्म में नहीं है। पूरी स्क्रिप्ट पढने के दौरान मुझे कभी फिल्म ‘सत्या’ याद आ रही थी, कभी ‘वास्तव में।’ यदि यह स्क्रिप्ट कभी नीरज पांडे, विशाल भारद्वाज या विधु विनोद चोपड़ा जैसे समझदार निर्देशकों के हाथ लग गई, तो वास्तव में इस पर बहुत ही धांसू फिल्म बन सकती है। खुद राजेश पांडे जी ने कल मुझे कहा था कि श्रीप्रकाश की जिंदगी पर अब तक जितनी फिल्में बनी हैं, वे सब फैक्ट्स से बहुत दूर हैं। जब श्रीप्रकाश शुक्ला बिहार के एक अस्पताल में घुसकर एक पूर्व मंत्री का म आदेश करता है, तो मुझे मुंबई का जे.जे. चेतावनी याद आ गई। स्क्रिप्ट में यूपी के एक पूर्व नामी मंत्री का जिक्र है, जो अब किसी भी राज्य के राज्यपाल हैं। श्रीप्रकाश शुक्ला इन मंत्री जी को एक दिन फोन करता है और मंत्री जी को अपनी इज्जत बचाने के लिए में अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। यूपी व्यापार संगठन के अध्यक्ष श्रीप्रकाश शुक्ला कीनिंग के बाद कई महीने तक यूपी ही नहीं आता है। कभी मुंबई, कभी कोलिटी, तो कभी जयपुर के होटलों में पड़ा रहता है। अनिश्चितमी की हद यह थी कि जब यूपी एसटीएफ श्रीप्रकाश शुक्ला के परिवारवालों को डिटेन करती है, तो यूपी के तीन मंत्री श्रीप्रकाश शुक्ला के आदेश पर उन्हें छुड़ाने के लिए मुख्यमंत्री के पास सिफारिश के लिए जाना है। बाद में मुख्यमंत्री तीनों कलाकारों को फटकार लगा देते हैं। राजनीति में अपराधियों की शुद्धि की रोंगने खड़ी कर देने वाली यह स्क्रिप्ट है। तो कभी जयपुर के होटलों में पड़ा रहता है। अनिश्चितमी की हद यह थी कि जब यूपी एसटीएफ श्रीप्रकाश शुक्ला के परिवारवालों को डिटेन करती है, तो यूपी के तीन मंत्री श्रीप्रकाश शुक्ला के आदेश पर उन्हें छुड़ाने के लिए मुख्यमंत्री के पास सिफारिश के लिए जाना है। बाद में मुख्यमंत्री तीनों कलाकारों को फटकार लगा देते हैं। राजनीति में अपराधियों की शुद्धि की रोंगने खड़ी कर देने वाली यह स्क्रिप्ट है। तो कभी जयपुर के होटलों में पड़ा रहता है। अनिश्चितमी की हद यह थी कि जब यूपी एसटीएफ श्रीप्रकाश शुक्ला के परिवारवालों को डिटेन करती है, तो यूपी के तीन मंत्री श्रीप्रकाश शुक्ला के आदेश पर उन्हें छुड़ाने के लिए मुख्यमंत्री के पास सिफारिश के लिए जाना है। बाद में मुख्यमंत्री तीनों कलाकारों को फटकार लगा देते हैं। राजनीति में अपराधियों की शुद्धि की रोंगने खड़ी कर देने वाली यह स्क्रिप्ट है।
श्रीप्रकाश शुक्ला की मंशा यूपी और बिहार में अपने कम से कम 15-15 विधायक बनाने की थी, ताकि कोई भी सरकार उसके लोगों के समर्थन के बिना ही संभव नहीं हो सके। वह यह भी कहती थी कि जब हमारे लोग अलग-अलग लोगों के लिए बूम सेल्फिंग करते हैं, तो फिर हम ही लोग खुद इलेक्शन लड़कर, खुद ही बो सेफचरिंग कर क्यों न विधायक बन जाते हैं।
स्क्रिप्ट में दीपक शर्मा का कई बार जिक्र आया है। श्रीप्रकाश शुक्ला को अंग्रेजी नहीं आती थी, पर दीपक शर्मा की खबरों में बड़ा इंटरेस्ट था। इसके लिए उसने अंग्रेजी के बारे में एक बंदे का लगा रखा था, जो दीपक शर्मा की खबरों को पढ़कर उसे सुनाता था। बाद में उन्होंने दीपक जी को एक दिन बिहार के अररिया के एक मर्डर की खबर के साथ एक बड़े राजनेता के अगले टार्गेट की भी जानकारी दे दी थी, जिसकी सूचना बाद में उन्होंने यूपी एसटीएफ को दी। दीपक शर्मा उन दिनों अंग्रेजी पत्र पायनियर में थे। बाद में लंबे समय तक आज तक में रहे। इन दिनों वह आईएएनएस में एग्जिक्यूटिव एडिटर हैं। श्रीप्रकाश शुक्ला की जिंदगी पर एक और भी फिल्म बनी है- रंगकर्मी। मैंने वह फिल्म भी देखी नहीं है। लेकिन श्री राजेश पांडे की लिखी स्क्रिप्ट पढ़कर अच्छे से श्रीप्रकाश शुक्ला की रंगीन जिंदगी का अहसास हो गया। इसी रंगीन कमजोरी की वजह से वह यूपी एसटीएफ के ट्रैप में भी आया था। पूरी स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद यह महत्वपूर्ण जानकारी मिली कि यूपी एसटीएफ के गठन की मूल वजह यह श्रीप्रकाश शुक्ला ही थी। जैसे एनआईए का गठन मुंबई में बचा हुआ हजार रुपये के एक नकली नोट से हुआ था, जो कोच्चि में आरबीआई केहाउस से चुराए गए ओरिजिनल नोट से पाकिस्तान में बनाया गया था।
यूपी एसटीएफ के संस्थापक चीफ वह श्री अरुण कुमार हैं, जिन्होंने बाद में सीबीआई में आरुषि हत्याकांड की भी जांच की, जिसके बाद में मेघना गुलजार ने तलवार फिल्म बनाई। शाहजहांपुर में पूरी स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद लगा कि शाहजहांपुर की यह यात्रा साकार हो गई। मुझे मालूम है कि जब यह पम्पलेट बुक के रूप में आएगी, तो इसमें कई मूल मुद्दों के नाम बदल दिए जाएंगे, क्योंकि कई अभी भी राजनीति में हैं। इसलिए अनएडिट वर्जन के एक-एक मूल किरदार, इन किरदार के चेहरों, उनके किस्सों को मैं काफी दिनों तक भूल नहीं पाऊंगा।