सत्ता की मलाई खाकर भाजपा की खटिया के खटमल बने ओम प्रकाश राजभर ? चुनाव से पहले अपनो को ही काटकर करा रहे हैं जग हंसाई,योगी की बेचैनी भी बन रही है चर्चा

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कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)- 9415155670

लखनऊ-भाजपा की सत्ता कुटिया में रहने वाले मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने आफत मचा रखी है। फिर भी उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि आज भाजपा में होते हुए भी लालकृष्ण आडवाणी जी का क्या हाल है? वैसे भी सत्ता का सुख चापते और भाजपा को मुंह चिढ़ाते राजभर की छवि अब हास्यास्पद हो चली है ।उन्हें ना तो पक्ष गंभीरता से लेता है और ना ही विपक्ष?

भाजपाइयों की कौन सी कोर ओम प्रकाश के प्रकाश में दबी हुई है कि जब भी मंत्री महोदय की इच्छा होती है वे सरकार व पूरी भाजपा को कोसते ही नही बल्कि अच्छे शब्दों में जैसे गरिया भी देते हैं। ऐसे में यह स्थिति देखकर घर की खटिया में घुसे खटमल की याद आती है ।जी हां राजभर सरकार रूपी भाजपाई खटिया में घुसे हैं और भाजपाइयों का ही खून पी रहे हैं? भाजपा के मंत्री बेचारे योगी बाबा के आगे चुप्पी साधे हैं और राजभर चुटकी काटते हैं! वह भी बार-बार….। वह सपा बसपा के साथ जाने की बात करते हैं, अकेले प्रत्याशी लड़ाने की बात करते हैं। अब कौन सी मजबूरी है जो राजभर के सामने पूरी भाजपा चुप है! इसे लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा तो होती ही है सूत्रों का दावा है कि भाजपा नेतृत्व राजभर को लोकसभा के चुनाव तक छूना नहीं चाहता ।भाजपा का मानना है कि उसे राजभर को लोकसभा चुनाव तक तो किसी तरह से बर्दाश्त करना ही है ।वह भी जैसे “निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय”।
उधर राजभर है कि मानते ही नहीं जब भी मौका मिलता है तो सबसे ज्यादा वह भाजपा को ही कोसते हैं। उन्हें प्रदेश सरकार में रहते हुए भाजपा के हर निर्णय में खामियां ही खामियां नजर आती हैं फिर भी वह सत्ता से चिपके हुए है।

पहले चर्चित और अब हास्यास्पद छवि के कठघरे में घिरते जा रहे ओमप्रकाश राजभर की बातों को ना तो पक्ष ही बहुत ही गंभीरता से लेता है और ना ही विपक्ष ।सही मायने में देखा जाए तो राजभर जिस तरह से जी भर भर के भाजपा को निशाना बनाते हैं उससे उनकी राजनीतिक विश्वासनीयता पर उंगली उठती नजर आती है । लोगों का कहना है कि या तो यदि वह सरकार में हैं तो सरकार की तरफ से रहे या फिर यदि विपक्ष की राजनीति करनी है तो विपक्ष के साथ खुलकर केआये। यहां वे एक साथ दो -दो नावों में पैर रखना चाहते हैं। यह कहीं ना कहीं वही है कि गुड भी खा रहे हैं और गुलगुले से परहेज भी कर रहे हैं!

प्रदेश की योगी सरकार में भाजपा के कोटे से बने मंत्री अथवा कई वरिष्ठ नेता भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने सावधान मुद्रा में खड़े नजर आते हैं!
लेकिन राजभर का उठापटक रूपी भार योगी बाबा कैसे बर्दाश्त कर रहे हैं यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है। राजभर ने सरकार बनने के कुछ दिनों बाद ही प्रदेश की भाजपा सरकार की नाक में दम कर रखा है ।वह कभी साधु-संतों पर हमला करते हैं तो कभी कुंभ की व्यवस्था पर हमला करते हैं । कभी आरक्षण पर मीन -मेख निकालते हैं ।यही नहीं वह ऐसा कोई भी मौका नहीं छोड़ते जिसमें भाजपा को उलाहना न दी जाय। इस समय राजभर भाजपा को धमकिया रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में यदि सम्मानजनक सीटें नहीं दी गई तो वह 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर देंगे।
वह यह भी कहते हैं कि सपा व बसपा के दरवाजे भी उनके लिए खुले हुए हैं ।सवाल इस बात का है आखिर राजभर करना क्या चाहते हैं? प्रदेश की जनता के सामने कहना क्या चाहते हैं ?अपनी ही पार्टी के लोगों को दिशा क्या देना चाहते हैं? क्या वह सत्ता सुख से घिरकर अब अपनी राजनीतिक दिशा को लेकर भ्रम की स्थिति में है ,अन्यथा उनका सियासी मतलब कुछ और है ?इसकी तो वही जाने लेकिन यह तय हैं कि जो नेता सियासत में विश्वास खो देता है वह फिलहाल पनप तो नहीं पाता।
इसके अलावा राजभर को यह भी ध्यान रखना होगा कि भाजपा में रहते हुए भी आज लालकृष्ण आडवाणी ,शत्रुघ्न सिन्हा, वरुण गांधी, संघ प्रिय गौतम ,संजय जोशी ,मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं का क्या हाल है! यही नहीं यह वही भाजपा है जिसने एक जमाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती बन रहे नीतीश कुमार को भी ऐन केन प्रकारेण अपने पक्ष में लाकर उन्हें मोदी गुण गाने के लिए विवश कर दिया।
इसलिए राजभर जी ठहरो !बाबा जी से ना भिडो ।कम से कम आडवाणी जी को तो देख ही लो !बाकी जानो आप और आपका काम? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे को भी कभी-कभी राजभर कि हमलावर बयानों का जवाब सधे शब्दों में देना पड़ता है।
सूत्र बताते हैं कि राजभर का जो दल है वह बनारस ,आजमगढ़ प्रभाव रखता है ।ऐसे में लोकसभा चुनाव तक भाजपा उन्हें छूना नही चाहती।यह भी हो सकता है कि आगे या तो भाजपा उन्हें झटक दे या फिर राजभर स्वयं ही भाजपा से अलग हो जाए।
फिलहाल इस समय भाजपा के सहयोगी दल भी कहीं न कहीं भाजपा पर दबाव बनाने के काम कर रहे हैं ।राजभर का भी यही दांव हो सकता है ।लेकिन यह उल्टा भी पड़ सकता है ?अब भाजपाइयों की क्या मजबूरी है ,राजभर की भी जो मजबूरी हो! यह तो आने वाले समय में मालूम होगा ।लेकिन यह तय है कि भाजपा के सहयोगी मंत्री के द्वारा भाजपा की ही नींद हराम किये रहना आम जनता और विपक्ष के लिए तमाशा मेरे आगे के अलावा कुछ भी नही हैं ।

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